Tuesday 29 September 2009

कविता ख़त्म नहीं होती

अजेय भाई मेरे पसंदीदा कवियों में एक हैं जिनकी कविताएँ पढ़कर मैं झूमता रहता हूँ। बहुत दिनों ब्लॉगिंग से अछूता रहने के बाद पुनः लौटा तो उनकी एक कविता हाथ लगी उम्मीद है आपको अजेय भाई की ये कविता पसन्द आएगी।


(मेन्तोसा1 पर एडवेंचर टीम)
पैरों तक उतर आता है आकाश
यहां इस ऊँचाई पर
लहराने लगते हैं चारों ओर
मौसम के धुंधराले मिजाज़
उदासीन
अनाविष्ट
कड़कते हैं न बरसते
पी जाते हैं हवा की नमी
सोख लेते हैं बिजली की आग।

कलकल शब्द झरते हैं केवल
बर्फीली तहों के नीचे ठंडी खोहों में
यदा-कदा
अपने ही लय में टपकता रहता है राग।

परत-दर-परत खुलते हैं
अनगिनत अनछुए बिम्बों के रहस्य
जिनमें सोई रहती है ज़िद
छोटी सी
कविता लिख डालने की।

ऐसे कितने ही
धुर वीरान प्रदेशों में
निरंतर लिखी जा रही होगी
कविता खत्म नही होती,
दोस्त ....................
संचित होती रहती है वह तो
जैसे बरफ
विशाल हिमनदों में
शिखरों की ओट में
जहाँ कोई नही पहुँच पाता
सिवा कुछ दुस्साहसी कवियों के
सूरज भी नहीं।

सुविधाएं फुसला नही सकती
इन कवियों को
जो बहुत गहरे में नरम और खरे
लेकिन हैं अड़े
संवेदना के पक्ष में
गलत मौसम के बावजूद
छोटे-छोटे अर्द्धसुरक्षित तम्बुओं में
करते प्रेमिका का स्मरण
नाचते-गाते
घुटन और विद्रूप से दूर

दुरूस्त करते तमाम उपकरण
लेटे रहते हैं अगली सुबह तक स्लीपिंग बैग में
ताज़ी कविताओं के ख्वाब संजोए
जो अभी रची जानी हैं।

1. (लाहुल की मयाड़ घाटी में एक पर्वत शिखर(ऊँचाई 6500मी0)

6 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

कविता मन की गहराइयों से स्वतः ही निकलती है विचारों का ऐसा प्रवाह कविता बन कर निकलता है की वह कभी ख़त्म नही होता..बस रूप परिवर्तित होता रहता है..

बहुत बढ़िया कविता....हमें पढ़ कर अच्छा लगा...धन्यवाद

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

शिखर साकार हो गया भाई. बधाई.

महेन्द्र मिश्र said...

प्रकाश भाई बहुत
अच्छी रचना . बधाई.

शरद कोकास said...

सुविधाएं फुसला नही सकती
इन कवियों को
यह जज़्बा अंत तक कायम रहे अजेय । अच्छी लगी यह कविता - शरद कोकास

अजेय said...

धन्यवाद!सभी का.

जज़्बा तो बना ही रहेगा , शरद भाई, विचारों की गारंटी नही है. कम्बख्त अवसर वादी हैं. कभी भी पाला बदल देते हैं. ये भरोसेमन्द नहीं हैं.बेवफा . पर इन्हे तलाक़ भी तो नहीं दे सकता. बस ढो सकता हूँ, ढो रहा हूँ. जब तक जज़्बा बना हुआ है.

प्रदीप कांत said...

सुनो,
आज ईश्वर काम पर है
तुम भी लग जाओ
आज प्रार्थना नहीं सुनी जाएगी।

बहुत बढिया कविताएँ अजेय भाई