अजेय भाई की क्षणिकाएँ प्रस्तुत कर रहा हूँ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। अजेय भाई, आप इतने नाराज़ हो जाओगे सोचा न था!!!!!!!!!!!!!!!
खैर आपकी याद में आपकी ही कुछ कविताएँ:-
चार क्षणिकाएँ
एक
सुनो,
आज ईश्वर काम पर है
तुम भी लग जाओ
आज प्रार्थना नहीं सुनी जाएगी।
दो
उसके दो हाथों में
चार काम दे दिए
और कहा
बदतमीज़,
लातों से दरवाज़ा खोलता है!
तीन
आँखें आशंकित थीं
हाथों ने कर दिखाया।
चार
काम की जगह पर
सब कूड़ा बिखरा था
बस काम चमक रहा था
आग सा।
3 comments:
बहुत लम्बे समय बाद दिखे?
awesome.
ek se badhkar ek sunder shanikaye
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