आज जब वह जा रही है
(मां की अंतिम यात्रा से लौटने पर)
वह जब थी
तो कुछ इस तरह थी
जैसे कोई भी बीमार बुढ़ीया होती है
शहर के किसी भी घर में
अपने दिन गिनती।
वह जब थी
उस शहर और घर को
कोई खबर न थी
कि दर्द और संघर्ष की
अपनी दुनिया में
वह किस कदर अकेली थी ।
आज जब वह जा रही है।
(मां की अंतिम यात्रा से लौटने पर)
कहां शामिल था
ख़ुद मैं भी
उस तरह से
उसके होने में
जिस तरह से इस अंतिम यात्रा में हूं ?
आज जब वह जा रही है
तो रोता है घर
स्तब्ध ह्ऐ शहर
खड़ा हो गया है कोई दोनो हाथ जोड़े
दुकान में सरक गया है कोई मुह फेर कर
भीड़ ने रास्ता दे दिया है उसे
ट्रैफिक थम गया है
गाड़ियां भारी भरकम अपनी गर्वीली गुर्राहट बंद कर
एक तरफ हो गई है दो पल के लिए
चौराहे पर
वर्दीधारी उस सिपाही ने भी
अदब से ठोक दिया है सलाम।
आज जब जा रही है मां
तो लगने लगा है सहसा
मुझे
इस घर को
और पूरे शहर को
कि वह थी...........और अब नहीं रही।
9 comments:
बहुत अच्छा लिखा है। ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
शब्द अवरुध्ध हैं........आँखें छलक उठी हैं,
और कहने को क्या है.........
माँ फितरत की मौसमें माँ कुदरत के राज।
माँ हर्फों की शायरी माँ साँसों का साज।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
शुरुआत ही ऐसी भावपूर्ण कविता से! स्वागत.
waah. sraahniya. keep it up dear. ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
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आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
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अमित के. सागर
इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका हिन्दी चिटठा जगत में स्वागत है। आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध बनाएंगे। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
kavita komal dil ke bhav hain jo shabdon ka rup le lete hain. narayan narayan
aadarneey prakaash ji ,
agey saahab ki in kavitaaon se parichay karwaanen ke liye shukriyaa ...
aapne yah kavita apnee comments me mere blog par chhodi thee. dhoondh kar yahan pahunchi hoon. hazaar baar padhi hai yah maine. isse adhik kya kahoon ke ham sab chook jaate hai jab ve hote hai. . sabhaar. leena
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