Monday 17 May 2010

नीचे देखते हुए चलना।

सब से ज्यादा मजा है

नीचे देखते हुए चलने में

और नीचे गिरी हुई हर सुंदर चीज को सुंदर कहने में


आज मैं माफ कर देना चाहता हूं

अब तक की तमाम बेहूदा चीजों को

जो दनदनाती हुई आई थीं मेरी जिंदगी में

और नीचे देखते हुए चलना चाहता हूं सच्चे मन से।


नीचे देखते देखते

आखिरकार उबर ही जाऊंगा उस खुशफहमी से

कि दुनिया वही है जो मेरे सामने है-

खूबसूरत औरतें, बढिय़ा शराब, चकाचक गाडिय़ां

और तमाम खुशनुमा चीजें

जिन के लिए एक हसरत बनी रहती है भीतर।


एक दिन मानने लग जाऊंगा नीचे देखते-देखते

कि एक संसार है

बेतरह रौंद दी गई मिट्टी की लीकों का

कीड़ों और घास पत्तियों के साथ

देखने लग जाऊंगा नीचे देखते-देखते

अब तक अनदेखे रह गए

मेरे अपने ही घिसे हुए चप्पल और पांयचों के दाग

एक भूखी ठांठ गाय की थूथन

एक काली लड़की की खरोंच वाली उंगलियां

मिटी में गरक हो गई कुछ काम की चीज खोजती हुई.....

बीड़ी के टोटे

चिडिय़ों और तितलियों के टूटे हुए पंख

मरे हुए चूहे धागों से बंधे हुए

रैपर, ढक्कन, टीन......

बरत कर फेंक दी गई और भी कितनी ही चीजें !


उस संसार को देखना

एक गुमशुदा अतीत की ख्वाहिशों में झांकने जैसा होगा

और इससे पहले कि धूल में आधी दबी उस अठन्नी को

लपक कर मु_ी में बंद कर लूं

वैसी बीसियों चमकने लग जाएंगी यहां-वहां

दूर धुंधलके से तैरकर आता अद्भुत स्वप्न जैसा

बरबस सच हो जाना चाहता हुआ।


ठीक ऐसा ही कोई दिन होगा

नीचे देखते-देखते

जब गुपचुप प्रवेश कर जाऊंगा उन यादों में

जब मैं भी वहां नीचे था कहीं

बहुत नीचे, और बेहद छोटा, बच्चा सा

यहां ऊपर पहुंचने के लिए बड़ा छटपटाता....

और समझने लग जाऊंगा कि अच्छा किया

जो तय कर लिया वक्त रहते

नीचे देखते हुए चलना।